अरुण विहार आर्य समाज में आप का स्वागत हैं
निवेदन:
हम आप की उन्नति, उज्जवल, सुखद जीवन की कामना करते हुए यह निवेदन करते हैं कि आप मन की शान्ति, परिवार की सुख समृद्धि आत्मिक उन्नति के लिए रविवार सत्संग और दैनिक हवन में पधार कर सत्संग की शोभा बढ़ाएं.
आर्य समाज के १० नियम, जो स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित किए गए थे और आर्य समाज के मूल सिद्धांतों को दर्शाते हैं:
- सत्यविद्या का मूल परमेश्वर है सभी सत्य ज्ञान और विद्या से ज्ञात पदार्थों का आदिमूल परमेश्वर है।
- ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर है—उसी की उपासना योग्य है।
- वेद सब सत्य विद्याओं का स्रोत हैं। उनका पढ़ना, पढ़ाना, सुनना और सुनाना सभी आर्यों का परम धर्म है।
- सत्य को स्वीकार करने और असत्य को त्यागने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
- सभी कार्य धर्म के अनुसार, यानी सत्य और असत्य का विचार करके करने चाहिए।
- शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति के द्वारा संसार का उपकार करना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है।
- सभी के साथ प्रेमपूर्वक, धर्मानुसार और यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए।
- अविद्या का नाश करना और विद्या की वृद्धि करना आवश्यक है।
- सामाजिक उन्नति को प्राथमिकता देना केवल अपनी उन्नति से संतुष्ट न रहकर समाज की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
- मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी नियमों के पालन में परतंत्र रहना चाहिए और व्यक्तिगत हितकारी नियमों के पालन में स्वतंत्र रहना चाहिए।
हिंदू धर्म के चार प्रमुख वेद हैं:
आर्य समाज क्या हैं
आर्य समाज एक हिन्दू समाज सुधार आन्दोलन हैं , जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी. यह आन्दोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिकिर्या स्वरूप हिन्दू धर्म में सुधार के लिए प्रारम्भ हुआ . आर्य समाज एक शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते हैं . तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, झूठे कर्मकांड व अन्धविश्वासो को अस्वीकार करते हैं इसमें छुआछुत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्स्त्रियो व शुद्रो को भी याज्योपवित्र धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया. स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश एक बहुत अच्छा ग्रन्थ हैं
Arya Samaj is a Hindu reform movement founded in 1875 by Swami Dayanand Saraswati. It aimed to revive Vedic ideals and counter social injustices and religious orthodoxy prevalent in India during the 19th century. The movement emphasized the authority of the Vedas, promoted social reforms, and played a role in the Indian independence movement.
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